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रहस रहा, जो विहँस रहा है ।"
अरी, इधर यह क्या ?
आकस्मिक यातना की घरी!
याचना की ध्वनि
किधर से आ रही है
किसकी है:
किस कारण से,
किसकी गवेषणा को निकली है ?
नर की है, या नारी की, बालक की है या बालिका की ? किसी पुरुष की तो नहीं है निश्चित, कारण कि अनुपात से
पर्याप्त पतली लग रही है कानों को । आखिर इसका क्या आशय हैं ?
इसकी स्पष्टता प्रकटता
अब विदित हुई, तो "
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ओ धरती माँ !
सन्तान के प्रति हृदय में दया धरती क्या शिशु की आर्त आवाज
कानों तक नहीं आ रही मंजिल का मिलना तो दूर,
मार्ग में जल का भी कोई ठिकाना नहीं !
फल-फूल की कथा क्या कहूँ, यहां तो "
छाया की भी दरिद्रता पलती है
मूकमाटी 201