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दर्शन का आयुध शब्द हैं-विचार, अध्यात्म निरायुध होता है सर्वथा स्तब्ध निर्विचार ! एक ज्ञान हैं, ज्ञेय भी एक ध्यान है, ध्येय भी ।
तैरने वाला तैरता है सरवर में भीतरी नहीं,
बाहरी दृश्य ही दिखते हैं उसे । वहीं पर दूसरा डुबकी लगाता है, सरवर का भीतरी भाग
भासित होता है उसे, बहिर्जगत् का सम्बन्ध टूट जाता है।
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अहा हा ! हा !! वाह ! वाह !! कितनी गहरी डूब है यह दर्शन और अध्यात्म की मीमांसा ! और
कुम्भ से मिलता है साधुवाद, अग्नि को ।
फिर क्या हुआ, सो "सुनो ! साधुवाद स्वीकारली-सी
अग्नि और धधक उठी। बाहर भले ही चलता हो मीठी-मीठी शीतलता ले ऊषा कालीन वात वो,
पर,
उसका कोई प्रभाव नहीं अवा पर !
तापमान का अनुपात बढ़ता ही जा रहा है दिन में और रात में,
प्रताप में, प्रभात में
कुछ अन्तर ही नहीं रहा ।
मूकमाटी 289