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इस पर अग्नि की देशना प्रारम्भ होती है : सो 'सुनो तुम : दर्शन का स्रोत मस्तक है, स्वस्तिक से अंकित हृदय से अध्यात्म का झरना झरता है।
दर्शन के बिना अध्यात्म-जीवन -::: .. :: ..., .
लताड़ी है पर, हाँ ! बिना अध्यात्म, दर्शन का दर्शन नहीं। लहरों के विना सरवर वह रह सकता है, रहता ही हैं पर हाँ ! बिना सरवर लहर नहीं। अध्यात्म स्वाधीन नयन है दर्शन पराधीन उपनयन दर्शन में दर्श नहीं शुद्धतत्त्व का दर्शन के आस-पास ही घूमती है तथता और वितथता वह यानी, कभी सत्य-रूप कभी असत्य-रूप दर्शन, होता है जबकि अध्यात्म सदा सन्य चिद्रूप ही
भास्वत होता है। स्वस्थ ज्ञान ही अध्यात्म है। अनेक संकल्प-विकल्पों में व्यस्त जीवन दर्शन का होता है। बहिर्मुखी या बहुमुखी प्रतिभा ही दर्शन का पान करती है, अन्तर्मुखी, बन्दमुखी चिदाभा निरंजन का गान करती है।
PK :: मूक माटो