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________________ रहस रहा, जो विहँस रहा है ।" अरी, इधर यह क्या ? आकस्मिक यातना की घरी! याचना की ध्वनि किधर से आ रही है किसकी है: किस कारण से, किसकी गवेषणा को निकली है ? नर की है, या नारी की, बालक की है या बालिका की ? किसी पुरुष की तो नहीं है निश्चित, कारण कि अनुपात से पर्याप्त पतली लग रही है कानों को । आखिर इसका क्या आशय हैं ? इसकी स्पष्टता प्रकटता अब विदित हुई, तो " - ओ धरती माँ ! सन्तान के प्रति हृदय में दया धरती क्या शिशु की आर्त आवाज कानों तक नहीं आ रही मंजिल का मिलना तो दूर, मार्ग में जल का भी कोई ठिकाना नहीं ! फल-फूल की कथा क्या कहूँ, यहां तो " छाया की भी दरिद्रता पलती है मूकमाटी 201
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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