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________________ रुक-रुक कर रुख बदलता काल इन दिनों कहाँ मिलता है ? अवा में काल का विभाजन रुक ही गया है अक्षण्ण-अखण्ड काल का प्रवाह है, बस ! इसी प्रसंग को ले कर यकायक अवा में कोई स्वैरविहारिणी हाँ-में-हाँ मिलाती ध्वनि की धुन अरे राही, सुन ! यह एक नदी का प्रवाह रहा हैकाल का प्रवाह, बस बह रहा है। बहता-बहता कह रहा हैं, कि "जीच या अजीव का यह जीवन पल-पल इसी प्रवाह में बह रहा बहता जा रहा है, यहाँ पर कोई भी स्थिर-धुव-चिर न रहा, न रहेगा, न या बहाव बहना ही ध्रुव रह रहा है, सत्ता का यही, बस 290 :: मूक माटी
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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