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अग्नि की परीक्षा नहीं होगी क्या ? मेरी परीक्षा कौन लेगा ? ..
अपनी कसौटी पर अपने को कसना बहुत सरल है पर सही-सही निर्णय लेना बहुत कठिन है, क्योंकि 'अपनी आँखों की लाली अपने को नहीं दिखती है।' एक बात और भी है, कि जिसका जीवन औरों के लिए कसौटी बना है वह स्वयं के लिए भी बने, यह कोई नियम नहीं है। ऐसी स्थिति में प्रायः मिथ्या-निर्णय ले कर ही अपने आपको प्रमाण की कोटि में स्वीकारना होता है"सो
अग्नि के जीवन में सम्भव नहीं है। 'सदाशय और सदाचार के साँचे में ढले जीवन को ही अपनी सही कसौटी समझती हूँ।' फिर कुम्भ को जलाना तो दूर, जलाने का भाव भी मन में लाना अभिशाप -पाप समझती हूँ, शिल्पी जी !
"तव !" उपरिली वार्ता सुनता हुआ भीतर से ही कुम्भ कहता है अग्नि से विनय-अनुनय के साथ कि "शिष्टों पर अनुग्रह करना
276 :: मूक माटी