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प्रलयकालीन चक्रवात-सम,
और कुछ नहीं, मात्र धूम धूम म ........... :: ... ... ... . . :: ...:.:: फलस्वरूप इधर कुम्भकार का माथा घूम रहा कुम्भ की बात मत पूछो !
कुम्भ के मुख में, उदर में आँखों में, कानों में और नाक के छेदों में, धूम ही धूम घुट रहा है आँखों से अश्रु नहीं, असुयानी, प्राण निकलने को हैं; परन्तु बाहर से भीतर घुसने वाला धूम प्राणों को बाहर निकलने नहीं देता, नाक की नाड़ी नहीं-मी रही कुम्भ की धूम्र की तेज गन्ध से। फिर भी ! पूरी शक्ति लगा कर नाक सं परक आयाम के माध्यम ले उदर में धूम को पूर कर कुम्भ ने कुम्भक प्राणायाम किया जो ध्यान की सिद्धि में साधकलम है नासंग योग-तरू का मूल है।
अन्न को नहीं, अग्नि को पचाने की क्षमता । अपनी जठराग्नि में हैं या नहीं
पृक पाटी :: 279