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निचले भाग में एक छोटा-सा द्वार है जिस पर य : . . . . . नव वार नवकार-मन्त्र का उच्चारण करता है शाश्वत शुद्ध-तत्त्व को स्मरण में ला कर; और एक छोटी-सी जलती लकड़ी से अग्नि लगा दी गयी अवा में, किन्तु कुछ ही पलों में अग्नि बुझती है। फिर से, तुरन्त अग्नि जलाई जाती
पुनः झट-सी बुझाती वह ! यह जलन-वुझन की क्रिया कई बार चली, तब लकड़ी को पुनः कहता है कुम्भकार सौहार्द पूर्ण भाषा में :
"लगता है, अभी इस शुभ-कार्य में सहयोग की स्वीकृति पूरी नहीं मिली, अन्यथा वह बाधा खड़ी नहीं होती !" इस पर कहती है लकड़ी पुनः सौम्य स्वागत स्वरों में, कि "नहीं नहीं यह बाधा मेरी ओर से नहीं है ! स्वीकार तो"स्वीकार" समर्पण तो"समर्पण
274 :: मक माटी