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उठने की शक्ति नहीं होना ही दोष है हाँ, हाँ ! उस पीड़ा में निमित्त पड़ता है. उठाने वाला बस, इस प्रसंग में भी यही बात है। कुम्भ के जीवन को ऊपर उठाना है, और इस कार्य में
और किसी को नहीं, तुम्हें ही निमित्त बनना है।" यू शिल्पी के वचन सुन कर संकोच-लज्जा के मिष अन्तःस्वीकारता प्रकट करती-सीपुरुष के सम्मुख स्त्री-सी
थोड़ी-सी ग्रीवा हिलाती हुई ..:... .. लाड़ी दती है. कि-....
“वात कुछ समझ में आई, कुछ नहीं, फिर भी आपकी उदारता को देख, बात टालने की हिम्मत
''इसमें कहाँ "."और लकड़ी की ओर से स्वीकारता मिली प्रासंगिक शुभ कार्य के लिए :
सो... अबा के मुख पर दवा-दवा कर रवादार राख और मारी ऐसी बिछाई गई, कि वाहरी हवा की आवाज तक अवा के अन्दर जा नहीं सकी अया की उत्तर दिशा में
अब !
मूक पाटी :: 273