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इधर धरती का दिन दहल उठा, हिल उठा है, अधर धरती के कॅप उटे हैं धृति नाम की वस्तु यह दिखती नहीं कहीं भी।
चाहे ति की हो या ति की, किमी की भी मति काम न करती। धरती की उपरिल उबरता फलवती शक्ति बह जाएगी पता नहीं कहाँ बह जाएगी। प्राय: यही सना रिहान नभचरों सं 'भूचरों को उपहार कम मिला करता है प्रहार मिला करता है प्रभृन । असंचमी संघमी को क्या दगा : विगगी रागी से क्या लेगा :
और सुना ही नहीं, कई बार देखा गया
नियम-संयम के सम्मुख असंयम ही नहीं, धम मा अपन घटन कता दिखा है, हार बीकाना होता है नभवों मुग़मों को :
मूक पाटी :: 2011