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कलियां खुल खिल पड़ीं पवन की हँसियों में, छवियाँ घुल-मिल गई गगन की गलियों में, नयी उमंग, नये रंग
अंग-अंग में नयी तरंग .. नयी ऊो बीमा :
नये उत्सव तो नयी भषा नये लोचन - समालोचन नया सिंचन, नया चिन्तन नयी शरण तो नयी वरण नया भरण तो नयाभरण नये चरण - संचरण नये करण - संस्करण नया राग, नयी पराग नया जाग, नहीं भाग नये हाव तो नयी तृपा नये भाव तो नवी कृपा नवी खशी तो नयी हँसी नयी-नयी ये गरीयसी।
नया मंगल तो नया सूरज नया जंगल तो नबी 'भू-रज नयी मिति तो नयी मति नयी चिति तो नवी यति नयी दशा तो नयी दिशा नहीं मृषा तो नया चशा नयी क्षुधा तो नयी तृषा नयी सुधा तो निरामिण
मूक पार्टी :: 263