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आकुलित करेगी क्या ? सब कुछ खुलेगा-खिलंगी
उसके सम्मुख विलम्ब ! यूँ प्रासंगिक कार्य ज्ञात होते ही, उसे सानन्द सम्पादित करने पवन कटिवद्ध होता है तुरन्त । कृतज्ञता ज्ञापन कग़ता धरा के प्रति, प्रलय-रूप धारण करता हुआ रोष के साथ कहता है, कि "अरे पथभ्रष्ट बादलो ! बल का सदुपयोग किया करो, छत्ल का न उपभोग किया करो ! छल-दल से हल नहीं निकलने वाला कुछ भी। कुछ भी करो या न करो, मात्र दल का अवसान ही हल है,
और वह भी निकट - सन्निकट !"
मति की गति-सी तीव्र गति से पवन पहुँचता है नभ-मण्डल में, पापोन्मुखों में प्रमुख बादलों को अपनी चपेट में लेता है, घेर लेता है और उनके मुख को फंर देता है
जड़ तत्त्व के स्रोत, सागर की ओर" | फिर, पूरी शक्ति लगा कर उन्हें ढकेल देता हैं..
मूक पाटी :: 261