________________
: :: :: ... ...
कुछ मौन ! फिर पवन ने कहा बिनय के साथ
कि ....
या सो कारण ज्ञात करना चाहता हूँ
जिससे कि प्रासंगिक कर्तव्य पूर्ण कर सकूँ अपने को पुण्य से पूर स.,
और पावन-पूत कर सकूँ, बस और कोई प्रयोजना नहीं।'
पर के लिए भी कुछ करूँ सहयोगी • उपयोगी बनें यह भावना एक बहाना है,
दूसरों को माध्यम बना कर मध्यम-बानी समता की ओर बढ़ने बस, सुगमतम पथ हैं, और औरों के प्रति अपने अन्दर भरी ग्लानि - घृणा के लिए विरेचन !" पवन के इस आशय पर उत्तर के रूप में, फल नं | मुख से कुछ भी नहीं कहा, मात्र गम्भीर मुद्रा से धरती की ओर देखता रहा।
दया-द्रवीभूत हो कर करुणा-छलकती दृष्टि फेरी सुदूर बैठे शिल्पी की और
पूक पाटी:: 250