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वसन्त-वर्पा-तुषार-घर्मा सब ऋतुओं में समान कर्मा मैत्रिक भाव का आस्वादन करता जीवन के क्षण-क्षण में पैत्रिक-भाव का अभिवादन करता
पवन का आगमन हुआ। ऐसे व्यक्तित्व के सम्बन्ध में ही मन्तों की ये पंक्तियाँ मिलती हैं, कि 'जिसकी कर्तव्य-निष्टा यह काष्ठा को छूती मिलती है उसकी सर्वमान्य प्रतिष्ठा तो" काष्ठा को भी पार कर जाती है।'
ली, स्मरपामात्र से ही मित्र का मिलन हुआ सो फूल गुलाब फूला न समाया मुदित-मुखी आमोद झूला झूलने लगा, परिणाम यह हुआआगत मित्र का स्वागत स्वयमेव हुआ।
फूल ने पवन को प्रेम में नहला दिया,
और बदले में पवन ने फूल को प्रेम से हिला दिया !
2.36 :: मूक माटी