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विशेष सक्रिय हो जाता है न ही कोटे की बात कारता है न ही काँटे को डाँटता है,
समयोचित बात करता है काँटे के उद्वेग - ऊष्मा के
उपशमन हेतु। जब सुई से काम चल सकता है तब तलवार का प्रहार क्यों करें ? जव फूल से काम चल सकता है. तब शूल का व्यवहार क्यों करें । जब मूल में भूतल पर रह कर ही
फल हाथ लग रहा है तब चूल पर चढ़ना वह मात्र शक्ति-समय का अपव्यय ही नहीं,. सही मूल्यांकन का अभाव सिद्ध करता है। यू, गन्ध-निधान गुलाब नीति-नियोग की विधि बताता प्रोति-प्रवीग की निधि दिखाता अपने अभिन्न अनन्य मित्र अणु-अणु से, कण-कण से सुरभि का परिचय कराता दिवि-दिगन्तों तक फैला कर गन्ध-वाहकः पबन का स्मरण करता है।
कुछेक क्षण निकलते, कि विनय - विश्वास विचारशील प्रकृति के अनुरूप प्रकृति वाला बन-उपवन विचरण-धमा
मूक माटो :: "