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और माँ के मुख से मंगलमय
आशीर्वचन सुनते यूँ : “पाप-पाखण्ड पर प्रहार करो प्रशस्त पुण्य स्वीकार करो !"
दृढ़मना श्रमण-सम सक्षम कार्य करने कटिबद्ध हो अथाह उत्साह साथ ले अनगिन कण ये उड़ते हैं थाह-शून्य शून्य में! रणभरी सुन कर रणांगन में कूदने वाले स्वाभिमानी स्वराज्य-प्रेमी लोहित-लोचन उद्भट-सम
या
तप्त लौह-पिण्ड पर धन-प्रहार से, चट-चट छूटते स्फुलिंग अनुचटन-सम लाल-लाल ये धरती-कण क्षण-क्षण में एक-एक हो कर भी कई जत्लकणों को, बस सोखते जा रहे हैं, सोखते जा रहे हैं... पूरा बल लगा कर भी भू-कण की राशि को चीर-चीर कर इस पार भू तक नहीं आ पाये जल-कण ।
पूक माटी : 243