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लटका मिलता है सदा, जबकि
पूर्ण विराम नीचे ।
प्रश्न का उत्तर नीचे ही मिलता है ऊपर कदापि नहीं
उत्तर में विराम है, शान्ति अनन्त ।
प्रश्न सदा आकुल रहता है
उत्तर के अनन्तर प्रश्न ही नहीं उठता, प्रश्न का जीवन - अन्त
सिन्धु में बिन्दु विलीन ज्यों"" !
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250 मुक माटी
लेखनी से हुई इस तुलना में
अपना अवमूल्यन जान कर ही मानो, निर्दय हो कर दूह प भू-कणों के ऊपर जनगिन ओले ।
प्रतिकार के रूप में
अपने बल का परिचय देते
मस्तक के बल भू-कणों ने भी जलों को टक्कर देकर
इस टकराव से कुछ ओले तो पल भर में फूट-फूट कर बहु भागों में बँट गये, और वह दृश्य
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उछाल दिये शून्य में
बहुत दूर "धरती के कक्ष के बाहर, 'आर्यभट्ट', 'रोहिणी' आदिक उपग्रहों को उठात देता है
यथा प्रक्षेपास्त्र !