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।एक भी नीला नीचे आ कर कम्भ को भग्न नहीं कर सका ! जहाँ तक हार-जीत की बात हैभू-कणों की जीत हो चुकी हैं
और बादलों-ओलों के गले में हार का हार लटक रहा है सुरभि-सुगन्धि से रहित
मृतक मुरझाया हुआ। तथापि, नये-नये बादलों का आगमन नूतन जोलों का उत्पादन बीच-बीच में बिजली की कौंध संघर्ष का उत्कर्षण-प्रकर्षण कलह, कशमकश धूर्तता सागर के विषम-संकेत क्रूरता आदि-आदि यह सब पगमव के बाद बढ़ता हुआ दाह-परिणाम है, क्रोध का पराभव होना सहज नहीं।
इस प्रतिकूलता में भी भूखे भू-कणों का साहस अद्भुत हैं, त्याग-तपस्या अनूठी : जन्म-भूमि की लाज माँ-पृथिवी की प्रतिष्ठा दृढ़ निष्ठा के बिना टिक नहीं सकती, रुक नहीं सकती यहाँ,
252 :: मूक माटी