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सूचित भावानुसार तुरन्त, बादलों ने बिजली का उत्पादन किया, क्रोध से भरी बिजली कौंधने लगी सब की आँखें ऐसी बन्द हो गईं चिपक गई हों गोंद से कहीं ! सूझबू बुझती बई
औरों की क्या कथा, निसर्ग से अनिमेष रहा इन्द्र भी निमेष-भर में निमेषवाला बन गया,
यानी
इन्द्र की आँखें भी
बार-बार पलक मारने लगीं। तभी इन्द्र ने आवेश में आ कर अमोघ अस्त्र वज्र निकाल कर बादलों के ऊपर फेंक दिया।
वज्राघात से आहत हो
मेघों के मुख से 'आह' ध्वनि निकली, जिसे सुनते ही
सौर मण्डल बहरा हो गया।
रावण की भाँति चीखना मेघों का रोना वह
अपशकुन सिद्ध हुआ सागर के लिए,
और
आग उगलती बिजली की आँखों में भूरि-भूरि धूलिकण
घुस - घुस कर
दुःसह दुःख देने लगे । ऐसी विषम स्थिति को देख बिजली भी कँपने लगी, यही कारण हो सकता है कि
मूक माटी 267