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ऊपर से नीचे की ओर गिरते अनगिन जल-कणों से, नीचे से ऊपर की ओर उड़ते अनगिन भू-कणों का नारदार टकराव ! परिणाम यह हुआ, कि एक-एक जल-कपा:::::. . . "..:::: :: कई कणों में विभाजित होतेलोरदार बिखराब ! बारों ओर जोर शोर"
और छोर-शून्य सौरमण्डल में धूमदार घिराय"!
घनों के ऊपर विधन छा गया भू-कण सम्पन हो कर भी अब से परे अनघ रहे, घनों के कण अनघ कहा ? अधों के भार, सौ-सौं प्रकार सो भयभीत हो भाग रहे, और भू-कण ये भूखे-से काल बन कर, भयंकर रूप ले जल-कणों के पीछे भाग रहे हैं।
इस अवसर पर इन्द्र भी अवतरित हुआ, अमरों का ईश ।
परन्तु
उसका अवतरण गुप्त वह दृष्टिगोचर नहीं हुआ
241:: मूक माटी