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224 मूक पाटी
भविष्य का भाल भला नहीं दिखा उसे
और
कषाय- कलुषित मानसवाला
यूँ सोचता हुआ सागर
कुछ मनोभाव व्यक्त करता है कुछ पंक्तियाँ कहता है, कि :
"स्वस्त्री हो या परस्त्री,
स्त्री जाति का यही स्वभाव है,
कि
किसी पक्ष से चिपकी नहीं रहती वह ।
अन्यथा,
मातृभूमि मातृ पक्ष को
त्याग-पत्र देना खेल है क्या ?
और वह भी
बिना संक्लेश, विना आवास !
यह
पुरुष समाज के लिए
टेढ़ी खीर ही नहीं,
त्रिकाल असम्भव कार्य है !
इसीलिए भूल कर भी
कुल परम्परा संस्कृति के सूत्रधार
स्त्री को नहीं बनाना चाहिए।
और
गोपनीय कार्य के विषय में विचार-विमर्श भूमिका
नहीं बताना चाहिए ।
धरती के प्रति वैर-वैमनस्य - भाव गुरुओं के प्रति भी गर्वीली दृष्टि सबको अधीन रखने की