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भली-बुरी भविष्य की गोद में है करवटें लेती पड़ी अभी ! इस पर भी दोनों के मन में चैन कहाँ : आकुलता कई गुनी बढ़ी है।
दिन में, रात में प्रकाश में, तम में
आँख बन्द कर के भी दोनों प्रलय ही देखते हैं, प्रलय ही इनका भोजन रहा है प्रलय ही प्रयोजन!
धरती के विलय में निलय किसे मिलेगा ?
और कहाँ वह जीवन-साधन? धरती की विजय में अभय किसे न मिलेगा ? और यहाँ जीवन-सा धन !
हमें, तुम्हें और उन्हें यहाँ कोई चाहे जिन्हें। हाय, परन्तु ! कहाँ प्राप्त है इस विचार का विस्तार इन्हें ? कुटिन' च्याल-चालवाला कराल-काल गालवाला साधु-बल से रहित हुआ बाहु-बल से सहित हुआ।
पूक माटी :: 237