________________
अन्दर के आदित कण आत के कारण बाहर आ-आ कर क्रन्दन कर रहे हैं!
ये तो कल के ही कणं हैं परन्तु, खेद है कल का रख कहाँ है वह कलरव ?
कलकण्ट का कण्ट भी कुण्ठित हुआ : : .. नः उन्नतः हा में ...
कवल भर-भर आया है
करुण क्रन्दन आक्रन्दन ! काक - कोकिल - कपोतों में चील - चिड़ियाँ - चातक - चित में बाघ - भेड़ - बाल - बकों में सारंग - कुरंग - सिंह - अंग में खग - खरगोशों - खरों - खलों में ललित - ललाम - लजील लताओं में पर्वत - परमोन्नत शिखरों में प्रौढ़ पादपों औ' पौधों में पल्लव-पातों, फत-फूलों में . विरह-वेदना का उन्मेष देखा नहीं जाता निमेष भी
सो...
संकल्प लिया पंछी-दल ने
सूर्य-ग्रहण का संकट यह जब तक दूर नहीं होगा तब तक भोजन-पान का चाग ! जन-रंजन, मनरंजन का त्याग : और तो और अंजन-व्यंजन का भी :
240 :: भूक माटो