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वनका पीवन संजीवन
लुटता-सा लगता है। अग्नि मित्र है ना पचन का ! तेज तत्त्व का स्रोत है ना सूर्य !
अरुक, अथक पथिक हो कर भी पवन के पद थमे हैं आज मित्र की आजीविका लुटती देख ।
से
कम्पित हैं अनुकम्पा सो तन में कम्पन है,
मासूम ममता की मूर्ति
स्वर - विहारी स्वतन्त्र - संज्ञी संगीत - जीवी संयम-तन्त्री सर्व-संगों से मुक्त निःसंग अंग ही संगाती संगी जिसका संघ-समाज-सेवी
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वात्सल्य-पूर वक्षस्तल ! तमो- रजो अवगुण- हनी सती- गुणी, श्रमगुण-धनी
वैर-विरोधी वेद-बांधि सन्ध्या की शंका से शंकाकुल आकस्मिक भय से व्याकुल जिसके पंख भर आये हैं
श्लथ पक्षी दल वह विहंगम दृश्य दर्शन छोड़ अपनी-अपनी नीड़ों पर आ मौन बैठ जाता है जिसका तन, और
चिन्ता की सुदूर गहनता में पैठ जाता है जिसका मन !
अनुक्षण
मूकमाटी
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