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वराह-राम का राही राह हिताहित-विवेक-वंचित स्वभाव से क्रूर, क्रुद्ध हुआ रौद्र-पूर, रुष्ट हुआ कोलाहल किये बिना एक-दो कवल किये बिना बस, साबुत ही निमलता है प्रताप-पुंज प्रभाकर को। सिन्धु में बिन्दु-सा मां की गहन-गोद में शिशु-सा राहु के गाल में समाहित हुआ भास्कर । दिनकर तिरोहित हुआ“सो" दिन का अवसान-सा लगता हैं दिखने लगा दीन-हीन दिन दुर्दिन से घिरा दरिद्र गृही-सा ।
यह सन्ध्याकाल है या अकाल में काल का आगमन ! तिलक से विरहितललना-ललाट-तल-सम गगनांगना का आँगन
अभिराम कहाँ रहा वह ? दिशाओं की दशा बदली जीर्ण-ज्वर-ग्रसित काया-सी।
कमल-बन्धु नहीं दिखा सो. कमल-दल मुकुलित हुआ कमनीयता में कमी आई अक्रम"! वन का, उपवन का जीवन बह मिटता-सा लगता है, और
298 :: पूक माटी