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यूँ गरजती दावानल-सम धधकती वनी-सी बनी"
सही-सही समझ में नहीं आता। पूरी खुली दोनों आँखों में लावा का बुलावा है क्या ? . ....:: . . . . . . :.
"भुलाया है यह ! बाहर घूर रहा है ज्वालामुखी तेज तत्त्व का मूल-स्रोत विश्व का विद्युत् केन्द्र।
संसार के कोने-कोने में तेज तत्त्व का निर्यात यहीं से होता है, जिसके अभाव में यातायात ठप्"
जड़-जंगमों का : चारों ओर अन्धकार, धुप्"।
निन्दा की दृष्टि से निरखने में निरत निकट नीचे आये नीच-निराली नीतिवाले बादल-दलों को जलाने हेतुप्रभाकर के प्रयास को निरख सागर ने राहु को याद किया, और कहा :
"प्रमाकर की उद्दण्डता कब तक चलेगी (पृथिवी से प्रभावित प्रभाकर) सौर-मण्डल की शालीनता को लीलता जा रहा वह ! धरती की सेवा में निरत हुआ पृथिवी से प्रभावित प्रभाकर
234 :: मूक माटी