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अदम्य आकांक्षा सर्व-भक्षिणी वृत्ति.. सागर की इस स्थिति को देख कर
तेज प्रभाकर को .. संहा न गया यह संब:: .
अतः रवि ने सागर-तत के रहवासी तेज तत्त्व को सूचित किया गूढ संकेतों से सचेत किया जो प्रभाकर से ही शासित था, जातीयता का साम्य भी था जिसमें; परिणामस्वरूप तुरन्त बड़वानल भयंकर रूप ले खौल उठा,
और 'हे क्षार के पारावार सागर ! तुझे पी डालने में एक पल भी पर्याप्त है मुझे
यूँ बोल उठा। आवश्यक अवसर पर सज्जन-साधु पुरुषों को भी, आवेश-आवेगों का आश्रय लेकर ही कार्य करना पड़ता है। अन्यथा, सज्जनता दूपित होती है दुर्जनता पूजित होती है जो शिष्टों की दृष्टि में इप्ट कब रही"?
कथनी में और करनी में बहुत अन्तर है, जो कहता है वह करता नहीं
मृक पाटो :: 225