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कुम्भकार की अनुपस्थिति प्रांगण में मुक्ता की वर्षा पूरा माहौल आश्चर्य में डूब गया अड़ोस-पड़ोस की आँखों में बाहर की ओर झाँकता हुआ लोभ !
हाथों-हाथ हवा-सी उड़ी बात राजा के कानों तक पहुँचती है।
फिर क्या कहना प्राणी ! क्यों ना छूटे राजा के मुख में पानी !!
अपनी मण्डली ले राजा आता है
मण्डली वह मोह-मुग्धा
लोम-लुब्धा, मुधा-मण्डिता बनी. अदृष्टपूर्व दृश्य देख कर !
पाप पाप पाप ! क्या कर रहे आप?
परिश्रम करो पसीना बहाओ
मुक्ता की राशि को
बोरियों में भरने का संकेत मिला मण्डली को ।
राजा के संकेत को
आदेश- तुल्य समझती
ज्यों ही नीचे झुकती मण्डली राशि भरने को,
त्यों ही
गगन में गुरु गम्भीर गर्जना : "अनर्थ अनर्थ अनर्थ !
मूक माटी 201