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कुम्भ के व्यंगात्मक बचनों से राजा का विशाल भाल एक साथ तीन भावों से भावित हुआलज्जा का अनरंजन! रोष का प्रसारण-आकुंचन!!
और
घटना की यथार्थता के विषय में
चिन्ता-मिश्रित चिन्तन!!! मुख-मण्डल में परिवर्तन देख राजा के मन को विषय बनाया,
फिर
कुम्भकार ने कुम्भ की ओर बंकिम दृष्टिपात किया।
आत्म-वेदी, पर मर्म-भेदी काल-मधुर, पर आज कटक कुम्भ के कथन को विराम मिले
___किसी भौति,
और
राजा के प्रति सदाशय व्यक्त हो अपना
इसी आशय से। लो, कुल-क्रमागतकोमल कुलीनता का
परिचय मिलता कुम्भ को ! लघु हो कर गुरुजनों को भूल कर भी प्रवचन देना महा अज्ञान है दुःख-मुधा,
परन्तु,
गुरुओं से गुण ग्रहण करना
218 :: मूक माटी