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आप प्रजापति हैं, दयानिधान ! हम प्रजा हैं दया-पात्र, आप पालक हैं, हम बालक यह आप की ही निधि है हमें आप की। समिति है
एक शरण ! भेरी अनुपस्थिति के कारण आप लोगों को कष्ट हुआ, अब पुनरावृत्ति नहीं होगी स्वामिन् ! आप अभय रहें।" यूं कहता-कहता मुक्ता की राशि को बोरियों में स्वयं अपने हाथों से भरता है बिना किसी भीति से। इस दृश्य को देख कर मण्डली-समेत राज-मुख से तरन्त निकलती है ध्वनि-- "सत्य-धर्म की जय हो। सत्य-धर्म की जय हो !!
इसी प्रसंग में प्रासंगिक वात बताता है अपक्व कुम्भ भी प्रजापति को संकेत कर : "बाल-बाल बच गये, राजन ! बड़े भाग्य का उदय समझो ! वरना, जल जल कर वाप्य बन
216 :. भूक माटी