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राज-मण्डली का मूच्छित होना, राजा का कीलित-स्तम्भित होना विधाका कारण स्टा
स्त्री और श्री के चंगल में फंसे दुस्सह दुःख से दूर नहीं होते कभीयह जो स्पष्ट दिखा विरति का कारण रहा। कुम्भकार को रोना आया इस दुर्घटना का घटक प्रांगण रहा, जो स्वर्ग और अपवर्ग का कारण था आज उपसर्ग का कारण बना, मंगलमय प्रांगण में
दंगल क्यों हो रहा, प्रभो ? लगता है कि अपने पुण्य का परिपाक ही इस कार्य में निमित्त बना है
स्व-पर-संवेदन हेतु प्रभु से निवेदन करता है, कि
जीवन का मुण्डन न हो सुख-शान्ति का मण्डन हो, इनकी मूर्छा दूर हो बाहरी भी, भीतरी भी इनमें ऊर्जा का पूर हो।
कुछ पलों के लिए माहौल स्पन्दन-हीन होता है। वह बोल बन्दन-लीन होता है
24 :: मूक पाटी