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यह सब देख कर
भयभीत हुआ राजा का मन भी, उसका मुख खुला नहीं
मुख पर ताला पड़ गया हो कहीं, हाथ की नाड़ी ढीली पड़ गई। राजा को अनुभूत हुआ, कि किसी मन्त्र शक्ति के द्वारा
मुझे कीलिए किया गया है... हाथ हिल नहीं सकते,
"थम गये हैं I
पाद चल नहीं सकते जम गये हैं । धुँधला-धुंधला - सा दिखने लगा, कान सुन नहीं सकते, "गुम गये हैं।
प्रतिकार का विचार मन में है पर, प्रतिकार कर नहीं सकता, किंकर्तव्यविमूढ़ हुआ राजा !
और
माहौल का मन्तव्य गूढ़ हो गया !
जमाने का जमघट आ गया इसी अवसर पर ! कुम्भकार का भी आना हुआ, देखते ही इस दृश्य को एक साथ शिल्पी की आँखों में तीन रेखाएँ खिंचती हैं विस्मय-विषाद विरति की !
विशाल जन समूह वह विस्मय का कारण रहा;
मूक पाटी 213