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ज्यों ही क्षेत्र की दूरी सिमट गई
सघन-कणों का ........:...: ...::.. '
पिलर हारों से मिलन हुआ
परस्पर गले से गले मिल गये ! शेष बचा संस्कार के रूप में छल का दिल छिल गया सब कुछ निश्छल हो गया
और जल को मुक्ति मिली। लो ! यूँ मेघ - से मेघ-मुक्ता का अवतार !
यह किसकी योग्यता वह कौन उपादान है ? यह किसकी सहयोगता वह कौन अवदान है ? यहाँ वेदना किसकी वह कौन प्राणं हैं ? यहाँ प्रेरणा किसकी वह कौन बाण हैं ? ये सब शंकाएँ स्वयं निःशंका हुईं अब सब कुछ रहस्य खुल गया पूरा का पूरा, मुक्ता की वर्षा होती अपक्व कुम्भों पर कुम्भकार के प्रांगण में! पूजक का अवतरण ! पूज्य पदों में प्रणिपात।
110 :: मूक माटी