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________________ कुम्भकार की अनुपस्थिति प्रांगण में मुक्ता की वर्षा पूरा माहौल आश्चर्य में डूब गया अड़ोस-पड़ोस की आँखों में बाहर की ओर झाँकता हुआ लोभ ! हाथों-हाथ हवा-सी उड़ी बात राजा के कानों तक पहुँचती है। फिर क्या कहना प्राणी ! क्यों ना छूटे राजा के मुख में पानी !! अपनी मण्डली ले राजा आता है मण्डली वह मोह-मुग्धा लोम-लुब्धा, मुधा-मण्डिता बनी. अदृष्टपूर्व दृश्य देख कर ! पाप पाप पाप ! क्या कर रहे आप? परिश्रम करो पसीना बहाओ मुक्ता की राशि को बोरियों में भरने का संकेत मिला मण्डली को । राजा के संकेत को आदेश- तुल्य समझती ज्यों ही नीचे झुकती मण्डली राशि भरने को, त्यों ही गगन में गुरु गम्भीर गर्जना : "अनर्थ अनर्थ अनर्थ ! मूक माटी 201
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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