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दान-पूजा-सया आदिक सत्कर्मों को, गृहस्थ धर्मों को सहयोग दे, पुरुष से करा कर धर्म-परम्परा की रक्षा करती है। यूं स्त्री शब्द ही स्वयं गुनगुना रहा है
'स' यानी सम-शील संयम है 'श्री' यानी तीन अर्थ हैं धर्म, अर्थ, काम-पुरुषाथों में पुरुष को कुशल-संयत बनाती है सो'स्त्री' कहलाती है।
ओ, सुख चाहनेवालो ! सुनो, 'सुता' शव गायं सुना रहा है, कि ....... :: ... ..' 'सु' यानी सुहावनी अच्छाइयों
और 'ता प्रत्यय वह भाव-धर्म, सार के अर्थ में होता है. यानी, सुख-सुविधाओं का स्रोत' 'सो'सुता' कहलाती है
यही कहती हैं श्रुत-सूक्तियों ! दो हित जिसमें निहित हों वह 'दुहिता' कहताती है अपना हित स्वयं कर ही लेती है, पतित में पतित पति का जीवन भी हित से सहित होता है, जिससे वह 'दुहिता' कहलाती है।
मृक माटी :: 205