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उभय-कुल मंगल-वर्धिनी उभय-लोक-सुख-सर्जिनी स्व-पर-हित सम्पादिका कहीं रह कर किसी तरह भी हित का दोहन करती रहती
सो दुहिता' कहताती है। हमें समझना है 'मातृ' शब्द का महत्त्व भी। प्रमाण का अर्थ होता है ज्ञान प्रमेय यानी ज्ञेय
और प्रमात को ज्ञाता कहते हैं समा: जानने की शक्ति वह मातृ-तत्त्व के सिवा अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं होती। यही कारण है, कि यहां कोई पिता-पितामः, पुरुष नहीं है जो सबकी आधारशिला हो, सवकी जननी मान मातृतत्त्व है।
मातृतन्च की अनुपलब्धि में जेय-ज्ञायक सम्बन्ध ठप् ! ऐसी स्थिति में तुम ही बताओ, सुख-शान्ति भुक्ति वह किसे मिलेगी, क्यों मिलेगी
किस-विध? इसीलिए इस जीवन में उसी माता का मान-सम्मान हो, उसी का जय-गान हो सदा,
धन्य'!
21 :. मृझ, पा