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'क' यानी पथिवी 'मा' यानी लक्ष्मी
और 'री' यानी देनेवाली इससे कुल मिला कर 'भाव निकलता है कि यह धरा सम्पदा-सम्पन्ना तब तक रहेगी जब तक यहाँ 'कुमारी' रहेगी। यही कारण है कि सन्तों ने इन्हें प्राथमिक मंगल माना है
लौकिक सब मंगलों में! धर्म, अर्थ और काम परुषाथों से गृहस्थ जीवन शोभा पाता है। इन पुरुषार्थों के समय प्रायः पुरुष ही पाप का पात्र होता है, वह पाप, पुण्य में परिवर्तित हो इसी हेतु स्त्रियाँ प्रयत्नशीला रहती हैं सदा। पुरुष की वासना संयत हो,
और पुरुष की उपासना संगत हो, यानी काम पुरुषार्थ निर्दोष हो, वस, इसी प्रयोजनवश वह गर्भ-धारण करती है। संग्रह-वृत्ति और अपव्यय-रोग से पुरुष को बचाती है सदा, अर्जित-अर्थ का समुचित वितरण करके।
204 :: मूक पार्टी