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अति पहुँचाने हेतु
दल-दल पैदा करने लगा ! दल-बहुलता शान्ति की हननी है ना ! जितने विचार, उतने प्रचार उतनी चाल-ढाल हाला युला जल- ... ... .. . .. .. . क्लान्ति की जननी है ना !
इसी का यह परिणाम है कि अतिवृष्टि का, अनावृष्टि का और
अकाल-वर्षा का समर्थन हो रहा यहाँ पर ! तुच्छ स्वार्थसिद्धि के लिए कुछ व्यर्थ की प्रसिद्धि के लिए सब कुछ अनर्थ घट सकता है !
वह प्रार्थना कहाँ है प्रभु से, वह अर्चना कहाँ है प्रभु की
परमार्थ समृद्धि के लिए ! इसी बीच विशाल आँखें विस्फारित खोल खड़ी लेखनी यह बोल पड़ी कि"अधःपातिनी, विश्वघातिनी इस दुर्बुद्धि के लिए धिक्कार हो, धिक्कार हो ! आततायिनी, आर्तदायिनी दीर्घ गीध-सी इस धन-गृद्धि के लिए धिक्कार हो, धिक्कार हो !"
मुक माटी :: 197