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देखो ना !
बाँस भी धरती का अंश है धरती ने कह रखा हैं बाँस को
कि
वंश की शोभा तभी है जल को मुक्ता बनाते रहोगे
युग-युगों तक..
संघर्ष के दिनों में श्री
दीर्घ श्वास लेते हुए भी
हर्ष के क्षणों में भी ।
फिर क्या कहना !
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विघ्न का विचार तक नहीं किया मन में निर्विघ्न जीवन जीने हेतु कितनी उदारता है धरती की यह ! उद्धार की बात ही सोचती रहती सदा सर्वदा सबकी ।
धरती माँ की आज्ञा पा बड़े घने जंगलों में गगन चूमते गिरिकुलों पर
बाँस की संगति पा
जलदों से झरा जल वंशमुक्ता में बदलने लगा तभी तो
वंशीधर भी मुक्त कण्ठ से
वंशी की प्रशंसा करते हैं मुक्ता पहनते कण्ठ में और
अपने ललित लाल अधरों से
लाड़ प्यार देते हैं वंशी को ।
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मूकमाटी : 195