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इससे पिछली, बिचली बदली पलाश की हंसी-सी साड़ी पहनी गुलाब की आभा फीकी पड़ती जिससे लाल पगतली वाली लाली-रची. . . . पद्मिनी की शोभा सकुचाती है जिससे, इस बदली की साड़ी की आभा वह जहाँ-जहाँ गई चली फिसली-फिसली, बदली वहाँ की आभा भी।
और, नकली नहीं, असली सुवर्ण वर्ण की साड़ी पहने हैं सबसे पिछली बदली वह।
इनका प्रयास चलता है सर्वप्रथम प्रभाकर की प्रभा को प्रभावित करने का ! प्रभाकर को बीच में ले कर परिक्रमा लगाने लगीं ! कुछ ही पलों में प्रभा तो प्रभावित हुई, परन्तु, प्रभाकर का पराक्रम वह प्रभावित-पराभूत नहीं हुआ, उसके कार्यक्रम में कुछ भी
कमी नहीं आई। अपनी पत्नी को प्रभावित देख कर प्रभाकर का प्रवचन प्रारम्भ हुआ। प्रवचन प्रासंगिक है, पर है सरोष !
"अतीत के असीम काल-प्रवाह में स्त्री-समाज द्वारा
200 :: मूक माटी