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जलधि 'जड़धी' है इसका भाव बुद्धि का अभाव नहीं'
जड़ यानी निर्जीवचेतना-शून्य घट-पट पदार्थों से धी यानी बुद्धि का प्रयोजन
और
चित् की अर्चना-स्वागत नहीं करना है। सागर में परोपकारिणी बुद्धि का अभाव, जन्मजात है उसका वह स्वभाव।
वही बुद्धिमानी है हो हितसम्पत्-सम्पादिका
और स्व-पर-आपत्-संहारिका'! सागर के संकेत पा कर सादर सचेत हुई हैं सागर से गागर भर-भर अपार जल की निकेत हुई गजगामिनी भ्रम-भामिनी दुबली-पतली कटि वाली गगन की गली में अबला-सी तीन बदली निकल पड़ी हैं। दधि-धवला साड़ी पहने पहली वाली बदली वह ऊपर से
साधनारत साध्वी-सी लगती है। रति-पति-प्रतिकूला-मतिवाली पति-मति-अनुकूला गतिवाली
मूक माटी :: 199