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पृथ्वी पर प्रलय हुआ हो, सुना भी नहीं देखा भी नहीं । प्रलय हेतु आगत बदलियाँ ये क्या अपनी संस्कृति को विकृत-छांवे मे बदलना चाहती हैं ?
अपने हों या पराये, भूखे-प्यासे बच्चों को देख
माँ के हृदय में दूध रुक नहीं सकता बाहर आता ही है उमड़ कर, इसी अवसर की प्रतीक्षा रहती हैंउस दूध को ।
क्या सदय हृदय भी आज प्रलय का प्यासा बन गया ?
क्या तन-संरक्षण हेतु धर्म ही बेचा जा रहा है ? क्या धन-संवर्धन हेतु शर्म ही बेची जा रही है ?
स्त्री जाति की कई विशेषताएँ हैं जो आदर्श रूप हैं पुरुष के सम्मुख ।
प्रतिपल परतन्त्र हो कर भी पाप की पालड़ी भारी नहीं पड़ती पल-भर भी !
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इनमें पाप भीरुता पलती रहती है अन्यथा,
स्त्रियों का नाम भीरू' क्यों पड़ा ?
प्रायः पुरुषों से बाध्य ही कर ही कुपथ पर चलना पड़ता है स्त्रियों को
परन्तु,
मूक मादी 201