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विनयोपजीवी उस पुट नेकोटि-पुटी अभ्रक-सा तन- वितान को पार कर काँटे की सनातन चेतना को प्रभावित किया।
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106 :: पूक माटी
उत्तुंग ऊँचाइयों तक उठनेवाला ऊर्ध्वमुखी भी ईंधन की विकलता के कारण
उलटा उतरता हुआ
अति उदासीन अनल- सम
क्रोध-भाव का शमन हो रहा है। पल प्रतिपल
पाप-निधि का प्रतिनिधि बना
प्रतिशोध - भाव का वमन हो रहा है। पल प्रतिपल
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पुण्य-निधि का प्रतिनिधि बना हुआ air- भाव का आगमन हो रहा है, और
अनुभूति का प्रतिनिधि बना हुआ शोध-भाव को नमन हो रहा है सहज अनायास ! यहाँ !!
प्रकृत को ही और स्पष्ट प्रकाशित करती-सी यह लेखनी भी उद्यमशीला होती है, कि बोध के सिंचन बिना शब्दों के पौधे ये कभी लहलहाते नहीं, यह भी सत्य है, कि शब्दों के पौधों पर सुगन्ध मकरन्द-भरे