________________
.. .. :
उनके इतिहास पर न रोना बनता है, न हंसना !" यूँ कहते-कहते हास्य रस ने एक कहावत कह डाली कहकहाहट के साथ'आधा भोजन कीजिये
दुगुणा पानी पीव। तिगुणा श्रम चटगुणी हँसी वर्ष सवा सौ जीव !'
प्रसन्नता आसन्न भव्य की आली है प्रसन्नता एक आश्रय, दिव्य डाली है
जिस पर गुणों के पदों फलों के लतः .. .
सदा-सदा दोलायित होते हैं। "ओरे हँसिया ! हँस-हँस कर बहस मत कर हास्य रस की कीमत इतनी मत कर ! तेरे अभिमत पर हम सम्मत नहीं हैं, हँसी की बात हम स्वीकार नहीं सकते सत्य-तथ्य की भाँति किसी कीमत पर !"
शिल्पी ने यूँ फिर से कहा"खेद-भाव के विनाश हेतु हास्य का राग आवश्यक भले ही हो किन्तु वेद-भाव के विकास हेतु हास्य का त्याग अनिवार्य हैं
हास्य भी कषाय है ना ! हँसन-शीलवाला प्रायः उतावला होता है। कार्याकार्य का विवेक
मूक मारी :: 158