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कुम्भ के कण्ठ पर एक संख्या और ऑकत है, वह है ६३ जो पुराण -पुरुषों की समृति दिलाती हैं हमें 1 इसकी यह विशेषता है कि
छह के मुख को तीन देख रहा है
और तीन को सम्मुख दिख रहा छह ! एक-दूसरे के सुख-दुःख में परस्पर भाग लेना सज्जनता की पहचान है, और औरों के सुख को देख, जलना औरों के दुःख को देख, खिलना दुर्जनता का सही लक्षण है। जब आदर्श पुरुषों का विस्मरण होता है
६३ का विलोम परिणमन होता है यानी
३६ का आगमन होता है। तीन और छह इन दोनों की दिशा एक-दूसरे से विपरीत है। विचारों की विकृति ही आचारों की प्रकृति की उलटी करवट दिलाती है। कलह-संघर्ष छिड़ जाता है परस्पर ।
1168 :: मृक माटो