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हमारे धवलिम भविष्य हेतु प्रभु की यह आज्ञा है कि : 'कहाँ बैठे हो तुम श्वास खोते सही-सही उद्यम करो पाप - पाखण्ड से परे हो
कर पर कर दो
बच जाओगे ।
अन्यथा
मेल में अन्ध हो
जेल में बन्द हो
पच पाओगे !'
'मर हम मरहम बनें
यह चार शब्दों की कविता भी मिलती है
यहीं, कुम्भ पर !
इसका आशय यही हो सकता है कि
कितना कठिनतम
पाषाण - जीवन रहा हमारा !
कितने पथिक जन
ठोकर खा गये इससे
रुक गये, गिर गये :
पथ को छोड़ कर फिर गये कितने !
फिर,
कितने पद लहूलुहान हो गये, कितने गहरे घाव - दार बन गये वे ! समुचित उपचार कहाँ हुआ उनका, होता भी कैसे पापी पाषाण से " ! उपचार का विचार भर
17.1 मूक पार्टी