SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हमारे धवलिम भविष्य हेतु प्रभु की यह आज्ञा है कि : 'कहाँ बैठे हो तुम श्वास खोते सही-सही उद्यम करो पाप - पाखण्ड से परे हो कर पर कर दो बच जाओगे । अन्यथा मेल में अन्ध हो जेल में बन्द हो पच पाओगे !' 'मर हम मरहम बनें यह चार शब्दों की कविता भी मिलती है यहीं, कुम्भ पर ! इसका आशय यही हो सकता है कि कितना कठिनतम पाषाण - जीवन रहा हमारा ! कितने पथिक जन ठोकर खा गये इससे रुक गये, गिर गये : पथ को छोड़ कर फिर गये कितने ! फिर, कितने पद लहूलुहान हो गये, कितने गहरे घाव - दार बन गये वे ! समुचित उपचार कहाँ हुआ उनका, होता भी कैसे पापी पाषाण से " ! उपचार का विचार भर 17.1 मूक पार्टी
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy