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गलाद बाबा बरसाता रहा और अपने दोष-छद्य छुपाता रहा
जलधि को बार-बार भर-भर कर! कई बार भानु को घूस देने का प्रयास किया गया पर न्याय मार्ग से विचलित नहीं हुआ
''वह
परन्तु, इस विषय में चन्द्रमा विचलित हुआ
और उसने जलतत्त्व का पक्ष लिया, लक्ष्य से च्युत हो, भर-पूर घूस ले लिया। तभी तो चन्द सम्पदा का स्वामी भी आज सुधाकर बन गया चन्द्रमा !
वसुधा की सारी सुधा सागर में जा एकत्रित होती फिर प्रेषित होती"ऊपर
और उस सुधा का सेवन करता है
सुधाकर, सामर नहीं सागर के भाग्य में क्षार ही लिखा है। 'यह पदोचित कार्य नहीं हुआमेरे लिए सर्वथा अनुचित है। यूँ सोच कर चन्द्रमा को लज्जा-सी आती है उज्ज्वल भाल कलंकित हुआ उसका
मूक माटी :: 191