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जब कभी धरा पर प्रलय हुआ यह श्रेय जाता है केवल जल को
धरती को शीतलता का लोभ दे इसे लूटा है, इसीलिए आज यह धरती धरा रह गई है न ही वसुन्धरा रही न वसुधा !
वह जल रत्नाकर बना हैबहा-बहा कर
धरती के वैभव को ले गया है। पर-सम्पदा की ओर दृष्टि का जाना अज्ञान को बताता है,
और पर सम्पदा हरण कर संग्रह करना मोह-मूर्छा का अतिरेक है। यह अति निम्न-कोटि का कर्म है स्व-पर को सताना है, नीच - नरकों में जा जीवन बिताना है।
यह निन्द्य कर्म करके जलधि ने जड़-धी का, बुद्धि-हीनता का, परिचय दिया है अपने नाम को सार्थक बनाया है।
मुक पाटी :: 188