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अपने साथ दुर्व्यवहार होने पर भी प्रतिकार नहीं करने का संकल्प लिया है धरती ने, इसलिए"तो"धरती सर्व-सहा कहलाती है सर्व-स्वाहा नहीं
और सर्व-सहा होना ही सर्वस्व को पाना है जीवन में
सन्तों का पथ यही गाता है। न्याय पथ के पथिक बने सूर्य-नारायण से यह अन्याय देखा नहीं गया, सहा नहीं गया और अपने मुख से किसी को कहा न ही गया ! फिर भी, अकर्मण्य नहीं हुआ वह बार-बार प्रयास चलता रहा सूर्य का, अन्याय पक्ष के विलय के लिए न्याय पक्ष की विजय के लिए।
लो ! प्रखर-प्रखरतर अपनी किरणों से जलधि के जल को जला-जला कर सखाया, चुरा कर भीतर रखा हुआ अपार धन-वैभव दिख गया सुरों, सुराधिपों को ! इस पर भी स्वभाव तो देखा, जला हुआ जल वाष्प में ढला
IA : मृक मादी